यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 9 मार्च 2020

देह मिलने की कभी


देह मिलने की कभी अभिलाषा जागी ही नहीं
प्रेम इतना चाहता था मन से हो जाए मिलन
जो भी मेरे यत्न हैं बस मूल उनका इतना भर
मेरी इतनी चाह है बस, तेरे अधरों का खिलन

प्रेम सुरसरि है गणित मैंने कभी माना नहीं
तुम्हरी मर्जी सो करो तुम मैं न करता आकलन
रूठने,  रोने,  बिछड़ने  की नहीं मैं सोचता
मैं तुम्हारी मुस्कराहट का करूँ बस संकलन

प्रेम की इक दृष्टि का भी गान मैं कैसे करूँ
देखने भर से तुम्हारे  सब दुखों का स्खलन
है मुझे विश्वास आओगी अगर मेरे साथ में
कर सकूँगा हँसते-हँसते बस विकारों का दलन

पूस की रातों में भी जब याद करता हूँ तुम्हें
सच कहूँ तो भाग जाती शीत की भारी गलन
प्रेम भी इक अनल है  ऐसा   कोई देवता
स्वर्ण जैसा शुद्ध  कर  दे प्रेम है ऐसी जलन



पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८   

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