यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

नये युग में भारत


नये युग में भारत भइया मुश्किल बचाना है
नया  रंगरूट  पूरा  सहर  का  दीवाना  है


लड़के सब ब्वाय हो  गये प्रेमिकाएं गर्लफ्रैंड
बाबू जी डैड  हो गये भाई  ब्रो  एण्ड एण्ड
ऐसे में तो भारत की झलक भी खो जायेगी
ऐसों को क्या पता जी लोक  गीत गाना है


सहर का जादू टोना गाँव तक चला आया
गाँव के ही लौंडे बोले सहर हमको जाना है


भारत की जड़ है देसी  देसी गर लाना है
देसी आम देसी  गाय को भी  बचाना है
बचाना है देसी महुआ आम का अचार भी
तभी थोड़ा–थोड़ा भारत लौट करके आना है


संस्कृति  बचाते  हुए  गाते मुस्काते हुए
देसी ही ढंग से हमें दुनिया पर  छाना है


धोती बचाना होगा अंगोछा  भी लाना होगा
आँगन में गौरैया को दाना  चुगाना  होगा
चमकाना  दांत  होगा  नीम के दातुन से
गोबर से घर में फिर से लेपा लगाना होगा


देसी  उपायों  से ही  प्रकृति  बच  पायेगी
माटी की  दियली  से  दिवाली  मनाना है


दादी नानी वाले किस्से हँस के सुनाना होगा
मेला और सावन झूला निश्चित बचाना होगा
अपनी ही संस्कृति से  अपनी पहचान है जी
देसी पहचान अपनी  सबको समझाना  होगा


चाँद और मंगल पाया दुनिया में भारत छाया
अपने  ही  ढंग  से  हमें  बुद्ध शुक्र जाना है


खटिया के  साथ कुआँ तुलसी भी लानी होगी
पोखर तालाब  की  भी इज्ज़त  बचानी होगी
फिर से  सजाना  होगा  खेतों में  खाद गोबर
हमको यदि भारत वाली चाहिए जिंदगानी होगी


उनकी  स्टाइल  अपनी, है  अपना  तेवर  भी
हम क्या हैं अपने  ढंग  से जग को बताना है


हमको विज्ञान चाहिए पर देसी  मान  चाहिए
असली भारत को भारत वाला सम्मान चाहिए
हमको सामान चाहिए अपनी जरूरत भर  का
शिवरात्रि वाले हमको फक्कड़  भगवान चाहिए


उनके विज्ञान अपने और अनुसन्धान  अपने
अपने  आयु वेद से भी  उनको  मिलाना है


अंग्रेज  वाली  इसे   इंडिया   बनाओ   ना
उन्नति के नाम पर जी विकृति ले आओ ना
भ्रष्ट बनाओ  नहीं  भारत  की संस्कृति को
आओ जी भारत  वालों गाँव को  बचाओ ना


उनका  अनुसरण  करके कीमत  चुकाई है
स्वच्छन्दता वाली हमे संस्कृति न लाना है


शिक्षा का माध्यम  अपनी  भाषा   बनाना है
रोजगार भी भारत की  भाषा   में  पाना  है
भाषा  बचेगी    तो   ही   भारत    बचेगा
हर   देशवासी   को  ये   सच   बताना है


मुश्किल है फिर भी हमको  भारत बचाना है
असली  भारत  है  देसी, देसी  ने  ठाना है



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   


  

     



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