वाग्देवी माँ सरस्वती
शब्द सर्जक भगवती
उपमा रूपक बिम्ब
शिल्प
छन्द सुर लय
ना मती
सीधे - सीधे याचना माँ
कर दो हमरी
सद्गती
हूँ अबोध दो बोध माता
हर लो सारा कलेस
माता
जो भी हैं उदगार हिय
के
कह सकूँ मैं सुबोध
माता
मूढ़ और मतिमंद
हूँ मैं
हर लो सारा क्रोध माता
दीप सा
मैं जल सकूँ
संवाद सबसे
कर सकूँ
क्रोध का
अनुवाद माता
प्रेम से
मैं कर सकूँ
घाव शब्दों से
लगे जो
शब्दों से
ही भर सकूँ
सत्य के लिए जर सकूँ
लोक हित में झर सकूँ
और मुरझाये अधर पर
हर्ष थोड़ा
धर सकूँ
राष्ट्र के मैं मान
ख़ातिर
हर्ष से
मैं मर सकूँ
आप की आया शरण माँ
शुद्ध कर दो आचरण माँ
अहं द्वेष से बच सकूँ मैं
सब कलुष का हो क्षरण
माँ
संरक्षण का हूँ
अभिलाषी
प्रेम का दो आवरण
माँ
हो विवेक का आगमन
माँ
प्रज्ञा का बरसे
सुमन माँ
जो रचूँ हो लोकहित में
शेष का कर दो शमन
माँ
राग मुझ में
व्याप जाये
सब दिशा में हो अमन
माँ
वन्दना पूजा व
अर्चन
ना ही जानू मन्त्र सर्जन
श्लोक छन्द व नाही कीर्तन
मात्र है श्रद्धा सुमन
सहज सीधे कर
रहा माँ
आप को शत शत नमन
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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