जो भी मिलता है बताते
मित्र हैं
पता चलता दुःख में
वे तो चित्र हैं
मित्र परिचित में किये अंतर नहीं
वे हैं केवल गंध मित्र
तो इत्र हैं
परिचितों को मित्र
कह फँसते रहे
और मौकों पर
वही हँसते रहे
मित्र केवल उँगलियों पर होते हैं
शेष मौकों पर तो बस डसते रहे
कहने को वैसे
तो मित्र हजार हैं
किन्तु सच में होते
बस दो-चार हैं
बिन कहे माँगे सदा जो साथ हो
कहो ना कहो वो ही
सच्चा यार है
इसका ना कोई रक्त से
सम्बन्ध है
ये तो निज के प्रेम का अनुबंध है
जब कोई सम्बन्ध काम
आता नहीं
मित्र आकर करते सब ही प्रबंध हैं
पवन तिवारी
संवाद - 7718080978
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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