प्रेम में स्वार्थ
की केवल वर्जना
प्रेम ही हृदय की सविनय
गर्जना
प्रेम के प्यासे मानव
नहीं देव भी
प्रेम उदात्त है अप्रतिम
अर्चना
प्रेम का रूप जल और सरिता, धरा
प्रेम लौकिक भी है
प्रेम है अपरा
जग भी तो प्रेम का
एक अनुबंध है
जग में समृद्ध वही
प्रेम जिसका खरा
प्रेम क्या है सुनो
आम धनश्याम है
प्रेम वाला सुखी आठों याम हैं
प्रेम धन से खरीदा
नहीं जा सके
प्रेम का प्रेम ही केवल दाम है
डाह के रोग को प्रेम ने मारा है
मीराबाई को भी प्रेम
ने तारा है
प्रेम की चाह में
देव भी तडपे हैं
प्रेम पावन परम गंग
की धारा है
प्रेम सारे कलुष को
भी हर लेता है
सारे आनन्द जीवन में
भर देता है
जग से मुक्ति का भी
प्रेम ही मार्ग है
प्रेम जीवन की हर
नाव को खेता है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
पवन तिवारी
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