जो मौक़ा हाथ आये तो निकम्मे बैठे
हँसते हैं
निकल जाए जो मौक़ा आह करके हाथ मलते
हैं
कभी जब वक्त आता जिंदगी में इम्तहानों का
जिन्हें तुम दोस्त कहते हो फ़क़त
परिचित निकलते हैं
कि जिनकी दोस्ती पर नाज़ होता है
हमें अक्सर
नाज़ का वक्त आने पर वे मिलकर भी न
मिलते हैं
बुरा जो वक्त आया तो मैं आया दोस्तों के पास
रहे सब चुप कहा मैंने कि अच्छा
दोस्त चलते है
है पलते सांप अस्तीनों में खालिस सच
नहीं अब ये
बहुत से दोस्त भी हैं अब जो
अस्तीनों में पलते हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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