प्रेम क्या हुआ कि
सजे स्वर साधना के
भाव जागे मन में हैं आराधना के
आज - कल स्व में मगन ऐसा हुआ हूँ
जैसे कि रचने लगा ऋचा वन्दना के
जो भी थे अवसाद गायब
हो गये
मुदित सारे पुष्प उर के हो गये
चंहु दिशा संगीत
सा बजने लगा
जगत में सब
मीत जैसे हो गये
जो भी बिगड़े काम थे
सब हो गये
प्रेम से बैरी भी अपने हो गये
प्रेम ने सद्भावना के बीज बोये
वास्तव में अब मनुज
हम हो गये
कृष्ण कैसे मदन मोहन हो गये
मनुज होकर देव कैसे हो गये
प्रेम को पाला
उन्होंने उर में जो
इसलिए भगवान सबके हो
गये
पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com
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