मैं हूँ भाषा तुम हो मेरा व्याकरण
प्रेम का तुमसे ही सीखा आचरण
मैं था वर्षा तुम
शरद बन के जो आयी
बन गया जीवन सुनहरा उद्धरण
प्रेम से तुमने हराया क्रोध को
तुमसे सीखा जिन्दगी के बोध को
प्रेम से जग को है
जीता जा सके
सिद्ध कर दिया प्रेम
के इस शोध को
करना चाहूँ मैं तुम्हारा
अनुकरण
सब तुम्हारे गुणों
का कर लूँ वरण
तुम जो आयी भवन से
गृह हो गया
हो गया सारे दुखों का निराकरण
प्रेम से कुछ उभर आये
गीत हैं
लगता है दीवार, खिड़की मीत है
मीठी तानों का हुआ
आदी श्रवण
सब तुम्हारे प्रेम से हुए
प्रीत हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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