यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 21 जनवरी 2018

देह के बाहर अंदर


एक मैं हूं अकेला 
मैं लोग नहीं हूं
मैं तो बस, "मैं हूं"
मुझे कुछ भी, कहीं भी
नहीं है ताकना - झांकना
मैं तो अंदर ही रहता हूं
इस देह के अंदर ही
मेरा आलय ही नहीं ,जग है
इस देह के बाहर ,मेरा
कोई अपना घर नहीं
याद नहीं आता मैं
कब से हूँ इस देह में
या जब से यह देह है
तब से , मैं भी हूं
आज - कल ये देह
अनजानी सी हरकतें
अकस्मात करती है
बदलाव आ रहा है
तेज से भी तेज
घबरा जाता हूं ,"अचानक"
लगता है पूरा भूमंडल
हिल रहा है "भयानक"
भूकंप के कंपन से,
मैं बाहर ताक-झाँक
नहीं करना चाहता
न मैं विशिष्ट होना चाहता हूं
मैं, बस इस देह की दुनिया से
बाहर, सीधे बाहर
आना चाहता हूं .
मेरा कोई आलय नहीं है
इस देह से बाहर
पर अब और सहन नहीं
इसकी अनावश्यक,
असहनीय दुनिया,
इस देह की परछाई
से भी दूर और
अपने पास आना चाहता हूं
भले ही मेरा बाहर कोई घर नहीं,
बनाऊंगा नया कुछ घर
या घर जैसा, जो भी हो,
बस बाहर आना चाहता हूं।

पवन तिवारी
संपर्क-7718080978

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