कोटि प्रयत्न किये
पर उसने भींच लिया
अभिरुचि विरुद्ध अभिवादन
मुझसे हो न सका
खंडित अभिमान हुआ उसका
अभिलषित वो वांछा पा न सका
अभिव्यक्त रहा
अव्यक्त हुई अंतस में वेदना
स्व का अभीष्ट कर
क्रंदन अन्तस में देखना
जिस द्वार गया
दुर्भाग्य मेरा,डटा अर्थ गर्वोक्ति किया
शीश झुका पग में
मेरे, कर वन्दन, का आदेश किया
ज्वाला धधकी,अंतस
खौला,भींचे अधरों संग लौट पड़ा
शारदा पुत्र के
मुखमंडल पर अर्थ का व्यर्थ ही चोट पड़ा
विमला के तात का मान
किया,बहुतों ने खुलकर गान किया
पर उदर विभुक्षित
हँस न सका , उसने अश्रु का मान किया
फिर भी मेरा मस्तक
ऊँचा , अधिपत्य न मुझ पर था दूजा
फिर द्वार सभी,
साहचर्य त्याग बस एक अलख का गृह सूझा
जितना भी फिर
रोना-धोना , बस उनसे ही सुव्यक्त किया
कुछ
रात्रि,प्रात,कुछ मास गये,कुछ मार्ग उन्होंने प्रशस्त किया
सब संबंधी, सब सख्य
गये, बस एक अयोनिज साथ रहे
जिसने सारे जग को
साधा,हम उसकी शरण को साध रहे
हम मस्तक धरे निरंजन
पग , वे धाय भुजा में गाहि लिए
तब भव धाया,हितई
जागा,निज आनन प्रभु में छिपाय लिए
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
जबर्दस्त
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