बेगुनाहों पे इस क़दर
ज़ुल्म अरे तूँ क्या करता है
किसी को ज़िन्दा कर
नहीं सकता और खुदा बनता है
बुराई करना मेरी खूब, मगर इतना करना
बुरा आदमी है बहुत,
मगर वसूलों पे चलता है
ऐ मेरे रब मेरे
दुश्मन को यूँ ही सलामत रखना
मज़ा आता है जब वो
मेरी कामयाबी से जलता है
मरते - मरते भी जब बच जाता हूँ , मज़ा आता है
देखता हूँ जब वो
मुँह बना के बेसाख्ता हाथ मलता है
हर मोड़ पर तेरे लिए
सहारे फिर भी तूँ डरता है
वो एक पाँव से ही
देख लम्बी डगर भरता है
तूँ तो कहता है तूँ
मौत से भी नहीं डरता
तो जरा ये बता इन
फरेबों से क्यों डरता है
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें