अपनी आखों की नमीं
से ज़रा मिलकर देखो
खुद के जुल्मों-सितम
से भी जरा मिलकर देखो
दूसरों को जलाकर जिन्दगी ना सीख पाओगे
कभी खुद आग की लपटों में भी जलकर देखो
माना कि कभी खुद के घर में आग लगी हो
और कहूँ मैं ये तमाशा भी जरा रुककर देखों
कोई घर दूर से जलते देखा तो क्या देखा
करीब जाओ जरा लपटों
से मिल कर देखो
झोपड़ी ही सही , जलती
हो,मगर अपनी हो
जलेगा खून , जब कहूँगा
जरा चलकर देखो
जिन्दगी बेवफा है
रोज कहते हो तो चलो
आओ कोशिश करो इक रोज़
तो मरकर देखो
पवन तिवारी
सम्पर्क- 7718080978
poetpawan50@gmail.com
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