अब मेरी औलादें हैं पहले
वाले नहीं हैं हम
पीठ पर हरदम लदी
रहती थी ज्यों खुद्दारियाँ
अब लदे रहते हैं
बच्चे खुद्दार नहीं हैं हम
वो जमाना और था जब
हम हमी हम थे
अब तो बेबस बाप हैं
अब हम नहीं हैं हम
दे सकते थे उसकी
गुस्ताखी का जवाब
मगर फिर वो हो जाते
जो नहीं हैं हम
अब मेरे दरवाज़े पर
आते नहीं मशहूर लोग
सत्ता अपनी हैं मगर
सरकार नहीं है हम
जो दोस्त कहते थे
मगर अब दूर जो हुए
बात इतनी निकली कि
अमीर नहीं हैं हम
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
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