मेरी चाहत नहीं पूरी दुनिया मैं पाऊँ
उतना ही दे प्रभू जितना समेट पाऊँ
देखकर दुनिया ये हसरत जागी
अब मैं खुद को खुद ही देख पाऊँ
बहुत से लोग और
रिश्तों की दरकार नहीं
लोग सच्चे हों , भले
थोड़े , मैं सहेज पाऊँ
मेरी चाहत रही है
रिश्तों को लेकर अक्सर
मिलें जब भी मिलें तो
सच्चे और नेक पाऊँ
तेरे कदमों में गिरुं और उठूँ
नज़रों में
इतनी ख्वाहिश तू
मुस्कराए तो माँ देख पाऊँ
जब कभी दर्द मिले इतना कि रो जाऊँ
तेरे आंचल में माँ खुद को मैं समेट पाऊँ
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
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