यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 24 दिसंबर 2017

तुम्हें चाहता हूं ,तुम आओ, सुबह की धूप जैसी






तुम्हें चाहता हूं ,तुम आओ, सुबह की धूप जैसी
मगर गर दोपहर की धूप हो तो, मत आना
थोड़ा ठहरना, सुस्ताना छांव में, थोड़ा शीतल होना
और शाम की मनोहर किरणों सी हो फिर आना

तुम्हें चाहता हूं, तुम आओ, अल-सुबह ताजे खिले गुलों सी
थोड़ी-थोड़ी शबनमी बूंदों के गहनो में सजकर
पर गर ढलती दोपहर के मुरझाए फूलों सी हो तो मत आना
थोड़ा ठहरकर,थोड़ी रात सँवरना और फिर रात रानी बन
मह-मह महकते हुए आना

मैं तुम्हें चाहता हूं, तुम आओ, मुस्कुराते हुए,
मैं बेकरार हूं बेसाख्ता, पर उदास हो, तो मत आना
पहले उन्हें अपनी खूबसूरत मुस्कान से डराना, नजरों से गिराना,
अदाओं से फटकारना और अल्हड़ता के जादू से भगा देना
और फिर पाक खुशबू बिखेरते हुए बेसाख्ता मेरी बाहों में आना

तुम आना तो अकेले अपने बदन के साथ मत आना
आना तो अपनी रूह को भी साथ लाना क्योंकि
मैं अकेले नहीं अपनी रूह के साथ बेसाख्ता,
बेकरार, बेइंतहा, बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं
जाने कब से कि तारीख तक याद नहीं

मेरे प्यार, मेरे इश्क, मेरी अनुरक्ति, मेरी मोहब्बत,
तुम आना, जरूर आना, बस, पूरा का पूरा आना
हम चाहते हैं एक-दूसरे में पूरा का पूरा समाना
तुम आना, जरुर आना, बस याद रहे, पूरा आना


पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com


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