जब से नज़रों ने देखा है उनको
गिरते - गिरते संभलने लगी हूँ
मुस्करा कर जो देखा उन्होंने
ख़ुद-ब-ख़ुद मैं मचलने लगी हूँ
प्यार जब से हुआ मुझको उनसे
आइनें में संवरने लगी हूँ
प्यार उनको भी है मुझसे जाना
हूर ख़ुद को समझनें लगी हूँ
चाहतों का लगा रोग ऐसा
हर पल बेचैन रहने लगी हूँ
चाहतों का लगा रोग ऐसा
हर पल बेचैन रहने लगी हूँ
मिल सकी ना खुलेआम तो क्या
उनसे ख़्वाबों में मिलने लगी हूँ
वे हुए ना मेरे हमसफ़र तो
सोचते ही ये डरने लगी हूँ
ख़्वाब भी बेतकल्लुफ़ हुए हैं
उनको बाँहों में भरने लगी हूँ
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें