यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 2 जून 2018

मैं आवारा नहीं हूँ


मैं आवारा नहीं हूँ
हाँ,वक़्त की नज़र में आवारा हूँ
तभी तो दुनिया की नज़र में आवारा हूँ
क्योंकि दुनिया की अपनी नज़र नहीं
सब वक़्त के नज़रिये के मोहताज़
मैंने ये सच जान लिया
आप ने जाना की नहीं

मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूँ
मैं आवारा नहीं हूँ ’’
आप उस दिन मानेंगे जिस दिन
मेरी ख़त्म हो जायेगी
वक़्त से अनबन पर
मुझे तब भी नहीं पड़ेगा फर्क

बस ! ख़ुद पर होगा गर्व
अपने सत्य पर ,अपने आत्मविश्वास पर
हाँ तब कहूँगा, एक लम्बी साँस लेकर
सीने को उभार और नथुनों को फुलाकर
मैं कहता था न
मैं आवारा नहीं हूँ

पवन तिवारी
सम्पर्क ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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तुम्हारी स्मृतियाँ


तुम्हारी स्मृतियों के वेग ने
अधरों पर ऊष्मा बिखेर दी
एक गर्माहट लसलसा उठी
जैसे एक दूसरे के अधरों ने
भींच लिया हो पूरी शक्ति से
भुजाएँ पाश की मुद्रा में
अकड़ गयी हों
प्रस्फुटित हो गयी इतनी ऊर्जा
जैसे धृतराष्ट्र भीम की
अस्थियों का बना रहे हों चूरा
साँस हिय से चढ़कर गले में
फँसकर छटपटा रही हो
नशे में तन गयी हों
दृग में रक्तिमा का आभास
उभर आया हो



और अकस्मात कुर्सी से जैसे उठाकर
बिछावन पर पटक दिया हो
और गले में अँटकी साँस
सर्र से नथुनों को फटकारते हुए
फुर्रर हो गयी
रक्तिम नयनों के दोनों कोरों से
नमकीन जलधार कानो की ओर
ढल गयी चुपचाप
उनमें भी था एक ताप
मैंने मूँद ली आँखें और
दौड़ने लगी साँसे
मैं हो गया निढाल
तुम्हारी स्मृतियों का ज्वार
मुझे कर देता बेबस
तब पर भी मुझे प्यारी हैं
तुम्हारी स्मृतियाँ

पवन तिवारी
सम्पर्क ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

आज - कल आवारगी कर रहा हूँ


आज - कल आवारगी कर रहा हूँ
बेपरवाह और आलसी भी हो गया हूँ
और रहने लगा हूँ अपनी अकड़ में
घर में अपने ही काम से काम
चोरी करने लगा हूँ.

चुराता हूँ अपने कामों बारीक़ नज़र
खुद को ही छलता हूँ शातिर की तरह
आज उस वट वृक्ष के नीचे अकेले में
चल रहा था विचार, मैं सचमुच में
ऐसा ही था क्या थोड़ी देर बाद
मैंने मान भी लिया, हाँ मैं ऐसा ही हूँ

तुम्हारे न रहने पर ये सब उभर आये हैं
अपने असली रूप में तुम थी तो
तुम्हारी आड़ में सब छुप जाते थे
अब कोई जगह नहीं इनके छुपने की
तुम्हारी याद बहुत आती
जब कहता हूँ अकेले में
तब या तो मैं बर्तन माँज रहा होता हूँ
या कपड़े धो रहा होता हूँ
कभी कभी पालक छाँटते वक़्त भी
आती है तुम्हारी याद
आज सोच रहा था
मैं तुम्हें काम के ही वक़्त
याद कर पाता हूँ या
आती है तुम्हारी याद
मैं स्वार्थी हूँ
मैं नहीं करता तुम्हें प्यार
पर जब पिछले के पिछले इतवार को
गरम जिलेबियाँ हाथ में उठाया
और तुम याद आयी तो
मैनें उन जलेबियों को
वैसे ही दोने में रख कर उठ गया था
वड़ा पाव जो तुम्हें बहुत पसंद है
आधा ही खाया था तुम्हारी याद आ गयी
और पूरा न खा सका, दोस्त ने पूछा था,
अच्छा नहीं है क्या,
मैं उत्तर में बस ! सर झुका कर
आगे बढ़ गया था,
बीते शनिवार को स्टेशन के पास
मशहूर चाट वाले के पास गये थे
मेरे दोस्त चाट खिलाने
पता है तब क्या हुआ था
तब चाट वाले ने गरमा-गरम
चाट से भरा दोना मेरी हथेली
पर रखते हुए कहा था 
और तीख़ा चाहिए होगा तो बोलिएगा साहब
और तीख़ा शब्द सुनते ही मेरे कान
तुम्हारी स्मृतियों में खींच ले गये
 और मेरे हाथ से चाट का दोना छूट गया
मेरा कुर्ता पायजामा
दोस्तों की पैंट शर्ट चाट के मसालेदार
चकत्तों से बदरंग हो गयी थी
और सब हक्के बक्के
चाटवाला डरते हुए बोला था
ज्यादा गर्म था क्या साहब,सॉरी
और हाँ बागीचे में जहाँ तुम मुझे
अक्सर ले जाना चाहती थी
कल मैं एक मित्र के साथ गया था
द्वार पर पहुँचा कि तुम याद आयी
और मैं लौट आया
मित्र के नाराज़ होने के बावज़ूद
आज - कल देर रात तक नींद नहीं आती
पता है क्यों  तुम्हारी स्मृतियाँ जो घेरे रहती हैं
तुम कुछ कहोगी ......ये क्या है ?


शुक्रवार, 25 मई 2018

वक़्त से झगड़ा

























































आज-कल क्या
इधर बहुत दिनों से
चल रहा है मेरा
वक़्त से झगड़ा

सुलह के प्रयास
कर रहा हूँ, निरंतर
किन्तु,सफलता से दूर
कर रहा हूँ इसके
कुछ अनुभव साझा

क्या आप से किसी ने बताया
वक़्त से झगड़ा होने पर
क्या होता है ?
मैं बताता हूँ

वक़्त से झगड़ा होने पर
उन सबसे झगड़ा होने की
बढ़ जाती है संभावना
जिन्हें आप जानते तक नहीं
राह चलते अज़नबी से भी
बस या रेल में भी
अपरिचित यात्री से भी
हो सकता है झगड़ा और हानि
अपनों से तो तय है झगड़ा होना

अचानक आप में
गुणों का लुप्त होना और
कमियों की बाढ़ आ जाना
आप में आ जाना
आत्मविश्वास की कमी,
चिड़चिड़ापन,मित्रों द्वारा
आप के फोन न उठाना
आप के संदेशों के
उत्तर न देना, पर
अपने सन्देश भेजते रहना


अचानक आप की डायरी
या फोन पुस्तिका में
मित्रों की सूची में
केवल नाम नज़र आना
मित्र गायब
आप निहारते रहें फोन सूची को
कि किससे कर सकता हूँ बात


अपनी पीड़ा को साझा
देर तक देखने पर भी
समझ में न आये
सैकड़ों नामों में
एक भी नाम
और एक उमस भरी
लम्बी साँस लेकर
धप से बंद कर देते हैं आप डायरी
और लापरवाही से रख देते हैं
एक तरफ फोन और



आप को सुनायी देती हैं
वातावरण में ऊँघती
आप की आलोचनाएँ
मनहूसियत,उदासियाँ
निकम्मापन और
बहुत सी बुराइयाँ
पर घबराना मत


मेरी बातें याद करना
लाना अमल में
धैर्य,कम बोलना,गुस्से को
मुस्कराहट में बदलना
अपमान को पीना आदि
जरुर बच जाओगे,


जब कभी ,किसी दिन
हो जाए वक़्त से समझौता
और फिर दोस्ती
फिर देखना, बाढ़ सी आ जायेगी
मित्रों की, फिर डायरी खोलना
सारे नम्बर मित्रों के
शुभचिंतकों के ही नज़र आयेंगे
वातावरण में अपनेपन की
गंध महसूस होगी


आप की नेकियों की चर्चा
उफान पर आ जायेगी
सफलता की भी
तब भी धैर्य रखना, कम बोलना
और हाँ इतराना नहीं क्योंकि
वक़्त की दुश्मनी स्थाई नहीं
तो दोस्ती भी स्थाई नहीं


पता नहीं तुम्हें मेरी बातें
ठीक लगी या नहीं
पर कभी शाँत मन से सोचोगे
जरूर सुकून मिलेगा
पूरे आदमी जो बन गये होगे



पवन तिवारी

सम्पर्क ७७१८०८०९७८

poetpawan50@gmail.com


अपनी उदासियों से मैंने दोस्ती की है


अपनी  उदासियों से मैंने  दोस्ती की है
क्या करूँ जब दोस्तों नें दुश्मनी की है

होता  जो  कोई  ग़ैर तो  ज़वाब देते हम
क्या करें जब दोस्तों ने दिल्लगी की है

फ़ासले भी सिमटे खुद मजबूरियों को देखकर 
कुछ ने झूठी  शान  में  आवारगी  की   है

जो उजालों की हिमायत में किये तक़रीर थे
ऐसों  ने  ही    दिए  बुझाकर  तीरगी  की  है

वो बड़ा  होता है जो अपने समय पर काम दे
छोटे  दीपक  ने   ही   घर   में  रोशनी  की  है



पवन तिवारी

सम्पर्क- ७७१८०८०९७८

poetpawan50@gmail.com

आज-कल मैं बहुत अच्छा लिख रहा हूँ








































आज-कल मैं बहुत अच्छा लिख रहा हूँ 
मुझे पता है तुम नहीं बोलोगे वक़्त
पर मेरे सिवा सिर्फ तुम्हें पता है
पर जिस दिन तुम बोलोगे
तब मुझे नहीं होगी आवश्यकता
कुछ भी अपने लेखन के बारे में
अच्छा कहने की
दुनिया कहेगी और मैं
बस ! मुस्कराकर रह जाऊँगा


औपचारिक विनम्रता की
नकली चादर ओढ़े
अक्सर यही कहूँगा
बस ! आप सब का प्यार है
बड़प्पन है, मैं तो बस !
साहित्य का एक छात्र हूँ
सीख रहा हूँ, लिखने का
प्रयास कर रहा हूँ


आज मैं इस उमस भरे
पन्द्रह गुणे दस के
सीलन भरे कमरे में
जो लिख रहा हूँ
उसे जब तुम पढ़ोगे
सारी दुनिया सुनेगी

पर मुझे कोई नहीं
सुन रहा आज
जबकि अंदर से बाहर तक
भरा हुआ हूँ सुनाने को
बेचारे असहाय, लाचार
इन कागजों के सीने पर
टांक दे रहा हूँ
अपने अंदर भरे
शब्दों की सारी नुकीली कीलें


मेरी तरह कोई नहीं सुन रहा
इस बेजुबान कागज को
क्योंकि मुझे भी कोई नहीं सुन रहा
सिर्फ तुम्हारे सिवा  
पर तुम पर नहीं हो रहा कोई असर
पर मुझे पता है
तुम पर
आयुर्वेद की दवाओं की तरह
धीरे-धीरे मेरे शब्दों का
असर होगा और
तुम खुश होकर
एक दिन चहकोगे
मेरे शब्दों के साथ

मैं अच्छा लेखक कहलाऊंगा या नहीं,
नहीं जानता
पर जो तुम्हारे मुँह से
सुनेगा चहचहाते हुए
मेरे लिखे शब्द
बोले बिना नहीं रह सकेगा
वाह, बहुत ख़ूब, अति सुंदर, कमाल
जिसने भी लिखा है
सीधे मन में उतर गया

फिर रचना के अंत में
अगर गलती से भी
पढ़ दिया तुमने मेरा नाम
पता है फिर लोग क्या कहेंगे ?
मैं तो बहुत पहले से ही जानता था
ये एक दिन बड़ा लेखक बनेगा
ये वही लोग होंगे जो
इन दिनों गोष्ठियों तक में
मुझे बिना ठीक से सुने
उठकर चले जाते हैं

लेकिन जब तुम सुनाओगे तो
बेताबी के साथ
पंडाल के बाहर खड़े होकर
सुनेंगे और बिना कहे ही
बजायेंगे तालियाँ

पर मैं, तुम्हारे सामने
गिड़गिड़ाऊँगा नहीं कि
तुम मेरी रचनाओं को
पुराने जमाने की अपढ़
चाचियों, भाभियों की तरह
बार-बार विनती करने के बाद
भाव खाकर फिर
पढ़कर सुनाओगे परदेश से आयी
उनके साजन की चिठ्ठी

एक दिन तुमसे रहा नहीं जाएगा
मजबूर होकर और वो भी स्वर में
गुनगुनाओगे, गाओगे
मेरी रचनाओं को
गली में, सड़क पर, मोड़ पर
चौराहे पर, चाय की टपरी पर
पान की गिलोरियों के साथ
अकेल में बहकते हुए, भीड़ में भी
हर उस जगह, जहाँ
मनुष्यता साँस लेती है और बाँचोगे
मेरी कहानियाँ
सत्यनारायण जी की
कथा की तरह
पर तब भी मैं तुम्हें
कुछ नहीं कहूँगा

मेरी इस बात को याद रखना वक़्त
रात के सवा दो बज गये हैं
अब सोने जा रहा हूँ
अब दुबारा
तुमसे कुछ नहीं कहूंगा
अब कहने की बारी तुम्हारी है बस !
प्रतीक्षा करूँगा, क्योंकि मुझे है
खुद पर विश्वास
शुभ रात्रि वक़्त



पवन तिवारी

सम्पर्क ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com