यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 25 मई 2018

आज-कल मैं बहुत अच्छा लिख रहा हूँ








































आज-कल मैं बहुत अच्छा लिख रहा हूँ 
मुझे पता है तुम नहीं बोलोगे वक़्त
पर मेरे सिवा सिर्फ तुम्हें पता है
पर जिस दिन तुम बोलोगे
तब मुझे नहीं होगी आवश्यकता
कुछ भी अपने लेखन के बारे में
अच्छा कहने की
दुनिया कहेगी और मैं
बस ! मुस्कराकर रह जाऊँगा


औपचारिक विनम्रता की
नकली चादर ओढ़े
अक्सर यही कहूँगा
बस ! आप सब का प्यार है
बड़प्पन है, मैं तो बस !
साहित्य का एक छात्र हूँ
सीख रहा हूँ, लिखने का
प्रयास कर रहा हूँ


आज मैं इस उमस भरे
पन्द्रह गुणे दस के
सीलन भरे कमरे में
जो लिख रहा हूँ
उसे जब तुम पढ़ोगे
सारी दुनिया सुनेगी

पर मुझे कोई नहीं
सुन रहा आज
जबकि अंदर से बाहर तक
भरा हुआ हूँ सुनाने को
बेचारे असहाय, लाचार
इन कागजों के सीने पर
टांक दे रहा हूँ
अपने अंदर भरे
शब्दों की सारी नुकीली कीलें


मेरी तरह कोई नहीं सुन रहा
इस बेजुबान कागज को
क्योंकि मुझे भी कोई नहीं सुन रहा
सिर्फ तुम्हारे सिवा  
पर तुम पर नहीं हो रहा कोई असर
पर मुझे पता है
तुम पर
आयुर्वेद की दवाओं की तरह
धीरे-धीरे मेरे शब्दों का
असर होगा और
तुम खुश होकर
एक दिन चहकोगे
मेरे शब्दों के साथ

मैं अच्छा लेखक कहलाऊंगा या नहीं,
नहीं जानता
पर जो तुम्हारे मुँह से
सुनेगा चहचहाते हुए
मेरे लिखे शब्द
बोले बिना नहीं रह सकेगा
वाह, बहुत ख़ूब, अति सुंदर, कमाल
जिसने भी लिखा है
सीधे मन में उतर गया

फिर रचना के अंत में
अगर गलती से भी
पढ़ दिया तुमने मेरा नाम
पता है फिर लोग क्या कहेंगे ?
मैं तो बहुत पहले से ही जानता था
ये एक दिन बड़ा लेखक बनेगा
ये वही लोग होंगे जो
इन दिनों गोष्ठियों तक में
मुझे बिना ठीक से सुने
उठकर चले जाते हैं

लेकिन जब तुम सुनाओगे तो
बेताबी के साथ
पंडाल के बाहर खड़े होकर
सुनेंगे और बिना कहे ही
बजायेंगे तालियाँ

पर मैं, तुम्हारे सामने
गिड़गिड़ाऊँगा नहीं कि
तुम मेरी रचनाओं को
पुराने जमाने की अपढ़
चाचियों, भाभियों की तरह
बार-बार विनती करने के बाद
भाव खाकर फिर
पढ़कर सुनाओगे परदेश से आयी
उनके साजन की चिठ्ठी

एक दिन तुमसे रहा नहीं जाएगा
मजबूर होकर और वो भी स्वर में
गुनगुनाओगे, गाओगे
मेरी रचनाओं को
गली में, सड़क पर, मोड़ पर
चौराहे पर, चाय की टपरी पर
पान की गिलोरियों के साथ
अकेल में बहकते हुए, भीड़ में भी
हर उस जगह, जहाँ
मनुष्यता साँस लेती है और बाँचोगे
मेरी कहानियाँ
सत्यनारायण जी की
कथा की तरह
पर तब भी मैं तुम्हें
कुछ नहीं कहूँगा

मेरी इस बात को याद रखना वक़्त
रात के सवा दो बज गये हैं
अब सोने जा रहा हूँ
अब दुबारा
तुमसे कुछ नहीं कहूंगा
अब कहने की बारी तुम्हारी है बस !
प्रतीक्षा करूँगा, क्योंकि मुझे है
खुद पर विश्वास
शुभ रात्रि वक़्त



पवन तिवारी

सम्पर्क ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
  

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