यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 10 जुलाई 2017

अन्दर बारिश ,बाहर बारिश

















अन्दर बारिश ,बाहर बारिश
मन में भी बारिश ही बारिश 
ऐसे में फिर पहली बारिश
तन भी हो गया बारिश - बारिश 

धरती ही कुछ प्यास बुझी है 
महक उठी है पाकर बारिश 
पवन का बदला है मिजाज़ कुछ 
शीतल हो गये पाकर बारिश 

निर्मल शीतल दृश्य मनोहर 
बारिश ने की ऐसी बारिश 
सारे दुःख को बहा ले गयी 
आयी जो ये पहली बारिश 


पवन तिवारी 
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com

बुधवार, 5 जुलाई 2017

आदमी से वफा की अपेक्षा ही क्या

















अपने दुःख को ही दुःख जग ने समझा सदा 
दूसरों के दुखों को वो समझा है क्या
दुःख में जब खुद पड़ें तभी कहते हैं
मेरे दुःख को कोई और और समझेगा क्या

जो भी कमजोर उसको सताते सभी
सक्षम को जग में कोई सताता है क्या
दीप को ही बुझाती सदा है पवन
जलते घर-झोपड़ों को बुझाया है क्या

आदमी से वफा की अपेक्षा ही क्या
जब वफा पर हैं कायम नहीं देवता
आँधियों ने उजाड़े कई झोपड़े
पर महल को कभी भी उजाड़ा है क्या

पवन तिवारी
सम्पर्क -7718080978

poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

एक थी सरला,एक थी गिरिजा....कश्मीरी विस्थापितों को समर्पित

मित्रों यह रचना मेरी कश्मीर की तमाम बहन- बेटियों को समर्पित हैं जिन्होनें अपना बलिदान दिया .साथ ही तमाम पीड़ित कश्मीरी पंडित भाइयों को . इस रचना को लिखते वक्त मेरी आँखें अनवरत झर रही थी. काफी देर तक मैं रोता रहा. लाख कोशिशों के बाद भी . अभी भी मैं इस कविता के प्रभाव से उबर नहीं पाया हूँ. सरला भट्ट और गिरिजा टिक्कू के साथ हुई वहशियाना बलात्कार की सामूहिक वारदात और फिर जघन्य हत्या और उनके शरीर को आरी से काटकर सडक पर फेंकने की घटना सोंचकर मेरा ह्रदय खौफ और घृणा और क्रोध से भर गया .मेरे रोयें खड़े हो गये . ऐसी हृदयविदारक घटना पर किसी कवि का दिल नहीं पसीजा. कोई कविता नहीं निकली . वेमुला ,अखलाक जुनैद पर कविता की झड़ी लगा दी .छाती भी पीटे. पीटिये मुझे भी दुःख है  पर सरला और गिरिजा के लिए एक शब्द भी क्यों नहीं निकले , इसका उत्तर चाहता हूँ.... कश्मीर तुम्हारा है ...वेमुला ,जुनैद तुम्हारे हैं तो फिर सरला और गिरिजा किसकी हैं ..... मेरी कश्मीरी और तमाम अनाम बहन बेटियों  को समर्पित ये रचना जिन्हें बात -बात पर कविता लिखने वाले कवि मनुष्य मानते ही नहीं ........ 
                                                                                                                पवन तिवारी 


सरला भट

यह भारत है जातिवाद-समुदायवाद का एक गहरा खड्डा
राजनीति और वोट लूटने वालों का प्यारा-सा इक अड्डा
कवियों की भी कलम बिकी है यहाँ, पक्षपात का लिए नगाड़ा
कलमकार अब बना लिए हैं अपना-अपना एक बाड़ा.

बड़े-बड़े चश्मों से निकली बड़ी-बड़ी रचनाएं हैं
अखलाक,वेमुला और जुनैद पर आहत भावनाएं हैं,
तिल को ताड़ और राई को खींच पहाड़ बनाएं हैं
और बहुत कुछ घटा देश में, क्या ध्यान में आये हैं

करो पैरवी पीड़ित की, दुखियारों की, असहायों की
रंग-जाति और धर्म-भेद के बिना मदद असहायों की
पीड़ा में भी धर्म-जाति का चश्मा अगर लगाओगे?
फिर निष्पक्ष कलम क्या होगी, कैसे सच कह पाओगे?

भारत के महान कवियो ! क्या तुम्हें याद नहीं कुछ भी ?
एक थी सरला,एक थी गिरिजा,क्या तुम्हें याद नहीं कुछ भी?
बहुत लिखा जग को मथ डाला, उन पर तो कुछ लिखा नहीं
स्मृतिलोप का रोग लगा है क्या तुम्हें याद नहीं कुछ भी?

नाम सुना है सरला भट्ट का, या याद तुम्हें दिलाऊं मैं?
एक थी गिरिजा टिक्कू भी, उनकी भी व्यथा सुनाऊं मैं?
कभी तुम्हारी कलम न डोली, इनकी नृशंस हत्याओं से?
कैसे इनकी अस्मत लुटी, यह भी तुम्हें बताऊं मैं?

कुछ कहते कश्मीर की बेटी,मैं कहता हूँ भारत की
उसकी भी इज्जत लुटी थी वह भी थी इस भारत की,
सामूहिक नोचा था उसको आतंकी गद्दारों  ने
हृदय-विदारक इस घटना पर छाती फटी न भारत की

सरला की अस्मत लूटी थी, वहशी और दरिंदों ने
फिर भी उनका मन न भरा, नोचा उसे दरिंदों ने,
खींच के सरला के शव को सड़कों पर करी नुमाइश थी
गलत हुआ,चिल्लाओ भी, जो किया शैतान दरिंदों ने.
सरला वो वीरांगना थी जिसने गद्दारों का पता बताया था
देश की खातिर लुटी-मिटी थी देश का मान बढ़ाया था,
थोड़ी भी गर शर्म बची है, कवियों और लेखकों में
सरला भट की गूँज करें सन नब्बे जब लरज़ाया था.

कहते हो कश्मीर तुम्हारा,तो फिर सरला किसकी थी?
है कश्मीर तुम्हारा तो सरला भी तुम्हारी बेटी थी,
जिस कश्मीर पर छाती कूटे, उसकी बेटी सरला थी
कुछ शर्म करो, कुछ उठो करो,वह भी तो हमारी बेटी थी.

एक कहानी और चलो मैं तुमको आज सुनाता हूं
था कश्मीर वो 90
का मैं उसकी व्यथा सुनाता हूं,
क्या गिरिजा टिक्कू का कभी नाम सुना है तुमने?
चलो तुम्हें मैं आज वहां ले चल करके दिखलाता हूं

जब कश्मीरी पंडित लूटे जा रहे थे
दिन दोपहरी मारे काटे जा रहे थे,
छोड़ जमी अपनी बंजारे हो रहे थे
दौड़-भागकर अपनी जान बचा रहे थे.

उसी समय एक लड़की थी गिरिजा टिक्कू
कुपवाड़ा में बांदीपोरा रहती थी,
घर से कहकर वेतन लेने जा रही हूं
उसे पता नहीं मौत लेने जा रही हूं

बीच सड़क से उसे उठाकर पापियों ने बलात्कार किए
वक्षस्थल को नोचा-काटा अनगिनत दुर्व्यवहार किए,
उसकी पीड़ा का कुछ भी है क्या तुमको अंदाज भला ?
सोच नहीं सकते तुम जो वह, उस बेटी के साथ हुआ .

पहले नोचा, अस्मत लूटी मिलकर कई दरिंदो ने
चिग्घाड़ें वो मार के रोई छोड़ा नहीं दरिंदों ने
पत्ते-पत्ते घास-फूस मिट्टी का कण-कण रोया था तब
पत्थर,घाटी, झील,यहाँ तलक लब खोला नहीं परिंदों ने

इतने से भी मन न भरा किया घृणित हैवानों ने
काट कर उसको आरी से फेंक दिया शैतानों ने,
सरला-गिरिजा की चीखें अभी गूंज रही है घाटी में
न्याय की खातिर तड़प रही है आज तलक वे घाटी में.

कलम तुम्हारी बिकी न हो तो, कलम चलाओ इन पर भी
वो भी थीं भारत की बेटियां, शंख-नाद करो उन पर भी,
नेता बोलें, चैनल बोले, कलम चले तो उन पर भी
न्याय मिले, हुंकार उठे कुछ कैंडल जले तो उन पर भी.

वरना छोड़ो राग सभी कि यह कश्मीर हमारा है,
अनेकता में एकता यह भारत देश हमारा है,
क्षेत्र, जाति और धर्म-वेश से ऊपर देश हमारा है
सरला-गिरिजा को न्याय मिले तो, कश्मीर हमारा है.


पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

शनिवार, 1 जुलाई 2017

चाहो कितना भी तुम

























चाहो कितना भी तुम, कुछ भी होता नहीं
गर चाहे  न  वो,  कुछ  भी  होता नहीं

सब  की  सब  कोशिशें सारी चालाकियाँ
फेल  हो  जाती  है, कुछ  भी होता नहीं

सारी दुनियाँ एक तरफ,एक तरफ बस वो
उसकी जीत के सिवा कुछ भी होता नहीं

सारी   ताक़त  लगा  लें, झिंझोडे  भले
पत्ता  हिलता  नहीं, कुछ भी होता नहीं

कितनी  शेखी  बघारें  अहं  कर लें हम
उसकी ख्वाहिश बिना कुछ भी होता नहीं

अपनी मर्जी  की कोशिश की मैंने बहुत
औंधें  मुँह मैं  गिरा कुछ भी होता नहीं

ना  ही  जन्में  कोई  ना ही कोई मरे
हो  इशारा  न  तो कुछ भी होता नहीं  

कर  लो  कोई  प्रतिज्ञा  या वादा कोई
उसकी सहमती के बिन कुछ भी होता नहीं

जैसा  वो  चाहता  करते  जाओ ‘पवन’
फिर न डर,कोई गम,कुछ भी होता नहीं 


पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
अणुडाक- poetpawan50@gmail.com



प्यार हो जाता है किया जाता नहीं - मुक्तक

प्यार हो जाता है किया जाता नहीं
कहता है ये जमाना मैं कहता नहीं
आगे बढना नहीं गर निभा ना सको
प्यार हो जाने दो पर करो तुम नहीं

वो बुलाएं तो तुम चली जाया करो
अपनी बातें भी कहके आया करो
कभी तुम भी बुलाकर उन्हें देखना
आ जाएँ तो रिश्ता निभाया करो

आने जाने का तुम सिलसिला तो करो
बात बढ़ जायेगी हौसला तो करो
प्यार करना तो फिर पीछे हटना नहीं
घर भी बस जाएगा फैसला तो करो

प्यार जम कर करो ख्याल इतना रहे
प्यार में सबसे ऊपर समर्पण रहे
खुस रहोगे सदा कोई होगा न गम
प्यार गंगा सा अविरल ही बहता रहे
   
प्यार में डींगे बहुत देर टिकती नहीं
आदमी हो रहो, कोई जादू नहीं
उससे भी कम कहो जितना कर सको

झूठ पर कोई रिश्ता भी टिकता नही 

पवन तिवारी 
सम्पर्क - 7718080978

काश उस मौसम में तूँ मिला होता

काश उस मौसम में तूँ मिला होता
प्यार ही प्यार बस मिला होता

इक धूर भी खुद्दारी का गिरवी नहीं रखा
वरना ये झोपड़ा कई मंजिला होता

मैं भी दामाद होता कुर्सी पे राज होता
सलामी की नहीं वरना सिला मिला होता

हूँ मजदूर मगर फक्र है खुद पे मुझको
बिकता तो जिन्दगी भर गिला होता  

करते गर जद्दोजहद तो क्या नहीं होता
देखते ख्वाब तुम तो वो भी मिला होता

दुआ दिल से तुम्हारी,तमन्ना सच्ची होती  
‘पवन’ चाहत में तुम्हें खुदा मिला होता

पवन तिवारी 
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com



बुधवार, 28 जून 2017

आयेगा बेहिसाब मेरी जान आयेगा.





























येगा मेरी जान बेहिसाब आयेगा.
प्यार लेने जब  इम्तिहान  आएगा

गम न कर तुझसे मिलने ज़रूर आयेगा
दिल अदाओं से भर कर सलाम आयेगा

प्यार में उसको मज़बूर कर देंगे यूँ
देखना लेके दिल का इनाम आयेगा

उसमें है प्यार ही प्यार प्यार आयेगा
मुस्कराते  हुए  मिलने  यार आयेगा

उससे  उसकी  सफाई  नहीं  चाहिए
देखना फिर भी उसका जवाब आएगा

इससे पहले कि कुछ उससे मांगूंगा मैं
है  वो  खुद्दार  देने  हिसाब  आयेगा

‘पवन’ दीवानगी  पे जो  उतरेगा  तो
प्यार का फिर नया इन्कलाब आएगा

पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978


poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 27 जून 2017

मरे हुए लोग हैं वो, आप कहते जिंदा हैं

हैं तो करोड़ों मगर कितने लोग जिंदा हैं.

ज़िन्दगी जिंदादिली में चाँद लोग ज़िंदा हैं


जुर्म होता देख जो कल चादरों को तान लिए
मरे हुए लोग हैं वो, आप कहते जिंदा हैं


 कुछ गये,कुछ लुटे, कुछ मरे कुछ लापता
जो थोड़े से बचे हैं मुआवज़े तक ज़िंदा हैं


 कल गया तहसील में हैरान बाबू ने कहा
आप तो कब के मर चुके हैं आप कैसे ज़िंदा हैं


 क्या कहूं क़ानून और रिश्वत में कितनी यारियां
सरकारी कागजों में कत्ल लोग सच में ज़िंदा हैं


 ज़िल्लत, जी हुजूरी, बेबसी, रहमोकरम
इस तरह जीना है तो करोड़ों लोग ज़िंदा हैं


 जब से मेरे बारे में अफवाह का पर्दाफाश हुआ
हृदयाघात हुआ है उनको हम अभी भी ज़िंदा हैं


 कौन कहता है कि मर गये है ‘पवन’

उनकी रचनाएं तो अभी ज़िंदा हैं  


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978


poetpawan50@gmail.com


ये बारिश तन गीला कर दे


























ये बारिश तन गीला कर दे
ये बारिश मन गीला कर दे
जम के बरस रही है बारिश
जैसे रग - रग गीला कर दे

सब कुछ गीला – गीला कर दे
आसमान को नीला कर दे
दादुर भी अब सरगम गायें
सब कुछ शीतलतम कर दे

गर्मी को झट विदा ये कर दे
मौसम मस्त सुहाना कर दे
मीठी नींद है आने लागे
चारो तरफ हरियाली कर दे

सब कुछ धुला – धुला सा कर दे
तरु,पल्लव,पथ स्वच्छ ये कर दे
धूल – धूसरित चर - अचर को
ये बारिश सब चकमक कर दे

अटकी आशा पूरी कर दे
कितने दुखों को दूर ये कर दे
खग ,किसान और जीव-जन्तु सब
सबके जीवन सुखमय कर दे

गन्दगी को स्वच्छ ये कर दे
प्रदूषणों से मुक्त ये कर दे
उड़ते जहरीले धुओं को
ये बारिश औकात में कर दे

ये बारिश तो मंगल कर दे
जंगल में भी मंगल कर दे
पतित पावनी प्रकृति ये बारिश
सब कुछ पावन-पावन कर दे


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978


poetpawan50@gmail.com