यह
भारत है जातिवाद-समुदायवाद का एक गहरा खड्डा
राजनीति
और वोट लूटने वालों का प्यारा-सा इक अड्डा
कवियों
की भी कलम बिकी है यहाँ, पक्षपात
का लिए नगाड़ा
कलमकार
अब बना लिए हैं अपना-अपना एक बाड़ा.
बड़े-बड़े
चश्मों से निकली बड़ी-बड़ी रचनाएं हैं
अखलाक,वेमुला और जुनैद पर आहत
भावनाएं हैं,
तिल को ताड़ और राई को खींच पहाड़ बनाएं हैं
और बहुत कुछ घटा देश में, क्या ध्यान में आये हैं
करो
पैरवी पीड़ित की, दुखियारों की, असहायों की
रंग-जाति
और धर्म-भेद के बिना मदद असहायों की
पीड़ा
में भी धर्म-जाति का चश्मा अगर लगाओगे?
फिर
निष्पक्ष कलम क्या होगी, कैसे
सच कह पाओगे?
भारत
के महान कवियो ! क्या तुम्हें याद नहीं कुछ भी ?
एक
थी सरला,एक थी गिरिजा,क्या तुम्हें याद नहीं कुछ भी?
बहुत
लिखा जग को मथ डाला,
उन पर तो कुछ लिखा नहीं
स्मृतिलोप
का रोग लगा है क्या तुम्हें याद नहीं कुछ भी?
नाम
सुना है सरला भट्ट का, या याद तुम्हें दिलाऊं मैं?
एक
थी गिरिजा टिक्कू भी, उनकी
भी व्यथा सुनाऊं मैं?
कभी
तुम्हारी कलम न डोली, इनकी नृशंस हत्याओं से?
कैसे
इनकी अस्मत लुटी, यह
भी तुम्हें बताऊं मैं?
कुछ
कहते कश्मीर की बेटी,मैं
कहता हूँ भारत की
उसकी
भी इज्जत लुटी थी वह भी थी इस भारत की,
सामूहिक
नोचा था उसको आतंकी गद्दारों ने
हृदय-विदारक
इस घटना पर छाती फटी न भारत की
सरला
की अस्मत लूटी थी, वहशी और दरिंदों ने
फिर
भी उनका मन न भरा, नोचा उसे दरिंदों ने,
खींच
के सरला के शव को सड़कों पर करी नुमाइश थी
गलत
हुआ,चिल्लाओ
भी, जो किया शैतान दरिंदों ने.
सरला
वो वीरांगना थी जिसने गद्दारों का पता बताया
था
देश
की खातिर लुटी-मिटी थी , देश
का मान बढ़ाया था,
थोड़ी
भी गर शर्म बची है, कवियों और लेखकों में
सरला
भट की गूँज करें सन नब्बे जब लरज़ाया था.
कहते
हो कश्मीर तुम्हारा,तो
फिर सरला किसकी थी?
है
कश्मीर तुम्हारा तो सरला भी तुम्हारी बेटी थी,
जिस
कश्मीर पर छाती कूटे, उसकी
बेटी सरला थी
कुछ
शर्म करो, कुछ
उठो करो,वह भी तो हमारी बेटी थी.
एक
कहानी और चलो मैं तुमको आज सुनाता हूं
था कश्मीर वो 90 का मैं उसकी व्यथा सुनाता हूं,
क्या
गिरिजा टिक्कू का कभी नाम सुना है तुमने?
चलो
तुम्हें मैं आज वहां ले चल करके दिखलाता हूं
जब
कश्मीरी पंडित लूटे जा रहे थे
दिन
दोपहरी मारे काटे जा रहे थे,
छोड़
जमी अपनी बंजारे हो रहे थे
दौड़-भागकर
अपनी जान बचा रहे थे.
उसी
समय एक लड़की थी गिरिजा टिक्कू
कुपवाड़ा में बांदीपोरा रहती थी,
‘घर
से कहकर वेतन लेने जा रही हूं’
उसे
पता नहीं मौत लेने जा रही हूं
बीच
सड़क से उसे उठाकर पापियों ने बलात्कार किए
वक्षस्थल
को नोचा-काटा अनगिनत दुर्व्यवहार किए,
उसकी
पीड़ा का कुछ भी है क्या तुमको अंदाज भला ?
सोच
नहीं सकते तुम जो वह, उस बेटी के साथ हुआ .
पहले
नोचा, अस्मत
लूटी मिलकर कई दरिंदो ने
चिग्घाड़ें
वो मार के रोई
छोड़ा नहीं दरिंदों ने
पत्ते-पत्ते
घास-फूस मिट्टी का कण-कण रोया था तब
पत्थर,घाटी, झील,यहाँ तलक लब खोला नहीं परिंदों ने
इतने
से भी मन न भरा किया घृणित हैवानों ने
काट
कर उसको आरी से फेंक दिया शैतानों ने,
सरला-गिरिजा
की चीखें अभी गूंज रही है घाटी में
न्याय
की खातिर तड़प रही है आज तलक वे घाटी में.
कलम
तुम्हारी बिकी न हो तो, कलम चलाओ इन पर भी
वो
भी थीं भारत की बेटियां, शंख-नाद करो उन पर भी,
नेता
बोलें, चैनल
बोले, कलम
चले तो उन पर भी
न्याय
मिले, हुंकार
उठे कुछ कैंडल जले तो उन पर भी.
वरना
छोड़ो राग सभी कि यह कश्मीर हमारा है,
अनेकता
में एकता यह भारत देश हमारा है,
क्षेत्र, जाति और धर्म-वेश से ऊपर
देश हमारा है
सरला-गिरिजा
को न्याय मिले तो, कश्मीर
हमारा है.