अपने दुःख को ही दुःख जग ने समझा सदा
दूसरों के दुखों को वो समझा है क्या
दुःख में जब खुद पड़ें तभी कहते हैं
मेरे दुःख को कोई और और समझेगा क्या
जो भी कमजोर उसको सताते सभी
सक्षम को जग में कोई सताता है क्या
दीप को ही बुझाती सदा है पवन
जलते घर-झोपड़ों को बुझाया है क्या
आदमी से वफा की अपेक्षा ही क्या
जब वफा पर हैं कायम नहीं देवता
आँधियों ने उजाड़े कई झोपड़े
पर महल को कभी भी उजाड़ा है क्या
पवन तिवारी
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com
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