बने हुओं को तोड़ रहा है
टूटों के ये जोड़ रहा है
सबको ही आकर्षित करता
मुड़े हुओं को मोड़ रहा है
रिश्तों के तटबंध बनाये
गैरों में संबंध बनाये
स्वाभिमान के शिखरों से भी
हँस करके अनुबंध बनाये
मित्रों में ये वैर करा दे
वैरी से मित्रता करा दे
जग के सबसे कठिन काम को
ये पहुँचे और यूँ करा दे
प्रेम कराये कलह कराये
रार कराये मार कराये
इसकी जैसी जब मर्ज़ी हो
अपने मन की सदा कराये
जहाँ खड़ा हो वहीं नमस्ते
पैर छुएं सब हँसते - हँसते
अर्थ की महिमा सबसे न्यारी
साधू मंत्री सभी हैं फँसते
पवन तिवारी
२७/०९/२०२४
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें