ये रात बड़ी उदास है !
इस परिवेश में
बड़ी उदासी है !
दिन नीरस सा
लग रहा है.
जब हम
ऐसा कहते हैं,
तो कितना बड़ा
भावनात्मक झूठ
बोल रहे होते हैं !
और लोग
मुँह लटकाकर वैसी ही
झूठी संवेदना
जताते है.
सत्य तो यह होता कि
उदास रात नहीं होती,
उदास होते हैं हम !
उदासी परिवेश में नहीं,
हमारे अंदर
पसरी होती है और
हम दिन को
नीरस बताकर
उसे अपनी हताशा में
कोस रहे होते हैं.
हम सच्चे वाले
झूठे लोग!
पवन तिवारी
०७/०६/२०२४
भावपूर्ण एवं सशक्त अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी आभार
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंउत्तम ! ☺️
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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