रोज सुबह होती है
रोज शाम होती है
किंतु, रात ! रात,
कई बार रात होती है ।
बीतने को क्या कहें कि
क्या न बीत जाता है
दिन, सप्ताह क्या
महीना बीत जाता है
और तो और साल,
साल गुजर जाता
है
किंतु सामने का समय
मुँह चिढ़ा रहा
होता
कहने को जग बीता,
वही नहीं बीतता है।
बुरा समय ठहरे सा
अच्छा समय भागे सा
इनके मध्य संघर्ष
सीख जैसा लागे सा
कौन यहाँ जागे सा
कौन यहाँ सोये सा
कौन यहाँ चौकन्ना
तोप जैसा दागे सा
यही सारा जोड़े जो
जिंदगी को धागे सा।
समय रुलाने वाला
समय हँसने वाला
एक बड़ा दुर्लभ है
सब में गाने वाला
।
पवन तिवारी
०४/०६/२०२४
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