अति गर्मी की बात चली है
अति वर्षा भी बड़ी खली है
कहीं-कहीं अकाल की आफत
जीवन की हर सांस में सांसत
छल की इमारतें ऊंची हैं
सत्य की झोपड़ियां टूटी हैं
शुद्ध वायु अवरुद्ध हो गई
और बुराई बुद्ध हो गई
आज समय का दम घुटता है
पर्यावरण रोज लुटता है
कालचक्र भी बिगड़ गया है
मौसम मन से उखड़ गया है
किसका भी वि श्वास नहीं है
लोगों में अब आस नहीं है
समय विकटता को बढ़ता है
सूरज मनमानी चढ़ता है
पृथ्वी भी अकुलाई सी है
मानव से घबराई सी
है
स्वारथ के चक्कर में मानव
कर्म से हो गया पूरा दानव
अब निर्णय का समय आ गया
अब करने का समय आ गया
अब भी केवल बात
करेंगे
तो पक्का है सभी मरेंगे
पवन तिवारी
०३/०६/२०२४
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