बाग़ पुरानी विधवा हो गयी
तालाबों की हत्या
टाट बिछाकर बुनिया बेची
मर गयी बुढ़िया सत्या
अकथ कहानी है विकास की
शिक्षा की मत पूछो
अंगरेजी में देवें गाली
तुम बिलकुल मत रूठो
अपनी इज्जत अंग्रेजों साथ चली गयी
सब कुछ निगल गयी
शिक्षा लेकर यंत्र आ गयी
ट्रैक्टर करे किसानी
गाय बैल आवारा हो गये
मुश्किन सानी - पानी
गौ माता की वंश बेल का
खेल कसाई जाने
बात कह रहा सच्ची
कोई माने या ना माने
शिक्षा और विकास रोली
सब कुछ निगल गयी
एक साँस में बोली – बानी
भाषा का भी हुक्का – पानी
ऐसे घोंट – घाँट के पी गयी
शिक्षा और विकास की नानी
बस अंगरेजी, बस अंगरेजी
हाय, बाय, हैलो अंगरेजी
कैसे, किससे, कहूँ मैं पूछूँ
सब कुछ फिसल गया
शिक्षा और विकास का गोला
सब कुछ निगल गया
अच्छी खेती उन्नत खेती
बाबू, भइया पढ़ेगी बेटी
लालच देकर ज़हर बो दिया
गाँव ने अपना रूप खो दिया
पैदावार बढ़ी जादू सी
जान फँस गयी पर दादू की
शिक्षा और विकास में फँसकर
गाँवों की मुस्कान गयी
शिक्षा और विकास की टोली
सब कुछ निगल गयी.
सब कुछ पक्के के चक्कर में
जगह – जगह कंक्रीट हो गया
गाँव गली सोंधी माटी का
धूसर - धूसर स्वाद खो गया
जल स्तर भी नीचा हो गया
गाँव - गाँव में सूखा हो गया
हरियाली वीरान हो गयी
शिक्षा और विकास की झोली
सब कुछ निगल गयी
युवा गाँव से गायब हो गये
बूढों की बस फ़ौज बढ़ गयी
रिश्ते नाते हो गये नकली
धनवानों की मौज़ बढ़ गयी
जगह-जगह दीवारें उठ गयी
विश्वासों की डोर कट गयी
मानवता जो शेष बची थी
वह भी जाति पाँति में बँट गयी
शिक्षा और विकास की होली
सब कुछ निगल गयी
काका, बाबू, भाई, भइया
चाची, दीदी, भौजी, अइया
सारे मीठे बोल खो गये
ऐसे नाते गोल हो गये
नई नई मतलब की भाषा
उससे बोलें जिससे आशा
गाँव नहीं अब सीदा सादा
वो भी बँट गया आधा आधा
वहाँ भी पहुँचा हुआ बिकसवा
दिखा रहा है ऊँच
असकवा
हो गयी दुर्लभ मीठी बोली
शिक्षा और विकास की चोली
सब कुछ निगल गयी
पवन तिवारी
०१/०५/२०२४
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें