ध्वंस हुए हैं मानवता के मानक सारे
अब के सम्बन्धों में ज्यादा
कंस हुए हैं
बातों का है मूल्य जुगाली
जितना केवल
नैतिकता के पहलू तो
निरवंश हुए हैं
वे केवल कहने भर
को बस मानव हैं
निकट से देखो सब दानव के अंश
हुए हैं
जो निकृष्टता के मानक पर
ऊँचे हैं
राजनीति के वे सशक्त स्तंभ
हुए हैं
जो थोड़े में भी, थोड़े से नैतिक थे
उनके थोड़े बचे मोह भी भंग
हुए हैं
जो हैं लालच, झूठ, कपट से
भरे हुए
राजनीति के सबसे भारी अंग
हुए हैं
जल जंगल से साथ हवा भी
बिगड़ी है
इनसे जाने कितने दुर्व्यवहार
हुए हैं
ये मत पूछो
मर्यादा कितनी टूटी
उससे ये सब जाने कब के पार
हुए हैं
जिन पर रहा भरोसा
वे पहले लूटे
कैसे कहूँ कि
ऐसे पहरेदार हुए हैं
पवन तिवारी
२८ /०४/ २०२४
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