प्रेम में जिन्हें छल मिले
हैं
आज वाले कल
मिले हैं
बासी रोटी भूख
में औ
जूठे जिनको जल मिले हैं
ऐसों को मत त्रास देना
प्रश्न भी करना नहीं
विरह में जो रो रहे हों
अपनापन जो खो रहे हों
विवश होकर ज़िंदगी
से
आधा जिंदा जो रहे
हों
ऐसों को मत त्रास देना
प्रश्न भी करना नहीं
अपनों के मारे
हुए जो
अपनों के चारे
हुए जो
है परिस्थिति मृत्यु की पर
साँस को धारे
हुए जो
ऐसों को मत त्रास देना
प्रश्न भी करना नहीं
रात जो बे-घर
हुए हैं
बारिशों में तर हुए हैं
जो अभी अपमान सहकर
नैन से निर्झर हुए हैं
ऐसों को मत
त्रास देना
प्रश्न भी करना नहीं
पवन तिवारी
१२/०२/२०२४
प्रश्न भी करना नहीं...
जवाब देंहटाएंअति अर्थ पू्र्ण सृजन सर।
सादर।
-------
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १३ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर धन्यवाद श्वेता जी
हटाएंरात जो बे-घर हुए हैं
जवाब देंहटाएंबारिशों में तर हुए हैं
बेहतरीन
सादर
हार्दिक धन्यवाद
हटाएंवाह! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं