बिन मांगे ही पाने वाले
क्या जाने श्रम वाला ठेला
कातर दुःख को गाने वाले
क्या जाने खुशियों का रेला
जिनसे दुनिया ही रूठी है
क्या जाने अपनों का मेला
सर्द का मौसम फटी बिवाई
वो ही जाने पीर पराई
पहने कोट अलाव तापते
वो क्या जाने ठिठुरन भाई
सावन में पूछा भैंसे से
बोला जी हरियाली छायी
साहब बोले तेज हवा है
उनको क्या कि आँधी आयी
झुनिया की तो छप्पर उड़ गयी
रोये कह के माई – माई
पूरा गाँव घूम आई है
मिला नहीं एक
भी हिताई
जो जैसा उसे वैसा दिखता
अच्छा बुरा दृष्टि पे भाई
अब तो और ज़माना बदतर
खा करके भी करें
बुराई
नेकी कर बदनामी
पाते
ख़ुशी को तरसें पाई–पाई
पवन तिवारी
११/०२/२०२४
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