यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

बिन मांगे ही पाने वाले


बिन  मांगे   ही  पाने  वाले

क्या जाने श्रम  वाला ठेला

कातर दुःख को गाने वाले

क्या जाने खुशियों का रेला

जिनसे दुनिया  ही रूठी है

क्या जाने  अपनों का मेला

 

सर्द का मौसम फटी बिवाई

वो   ही    जाने   पीर   पराई

पहने   कोट  अलाव  तापते

वो  क्या जाने ठिठुरन भाई

सावन   में   पूछा    भैंसे  से  

बोला  जी  हरियाली  छायी

 

साहब   बोले   तेज   हवा   है

उनको क्या कि आँधी आयी

झुनिया की तो छप्पर उड़ गयी

रोये    कह   के   माई – माई

पूरा    गाँव    घूम    आई   है

मिला  नहीं  एक  भी हिताई

 

जो जैसा  उसे वैसा दिखता

अच्छा   बुरा  दृष्टि  पे   भाई

अब तो और ज़माना बदतर

खा करके  भी  करें  बुराई

नेकी  कर   बदनामी  पाते

ख़ुशी  को तरसें पाई–पाई

 

पवन तिवारी

११/०२/२०२४      

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