यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

भात और लात


 

कभी थोड़े चुपके से

दीदी ने प्यार से खिलाया था

अपने हिस्से का भात !

और बदले में पड़ी थी

पीछे से एक जोरदार लात !

आ गया था मुँह से बाहर

सारा का सारा भात ! और

टूट गया था आगे का आधा दांत,

होंठ हो गये थे चटख लाल !

देखकर यह दृश्य भर आयी थी

दीदी की आँखें !

उतर आया था आँखों में आघात !

जाने कितने वर्षों बाद या कहूँ

जीवन के ढलते वर्षों में

नसीब हुआ है बिना डर के

भर पेट खाने को भात,

तब वैद्य ने प्रेम से

समझाते हुए कहा-

जैसे कहते हों तात,

बिलकुल मत खाना भात !

यदि नहीं माने तो...

लगा जैसे आगे के शब्द कहेंगे,

लात से भी भारी पड़ेगा भात !

मन झुंझला कर बोला- हाय रे भात!

 

पवन तिवारी

२३/०१/२०२४  

   

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