खाली जेब ने सिखाया था
रेल की पटरियों पर चलना.
रेल की पटरियों ने सिखाया
अनसुनी ध्वनियों को सुनना.
और चीखती ध्वनियों से
रहना सजग और दूर!
उन पटरियों ने सिखाया
ठहर कर भी दूर की यात्रा
करना!
लोहे की कठोर पटरियों ने
जिंदगी में जीने का,
एक ऐसा भी तरीका बताया;
इन्हीं पटरियों के बीच चलता
हुआ
आगे-पीछे, अगल- बगल झाँकता हुआ,
मृत्यु से आँख मिचोली खेलता
हुआ;
कालवा से चलकर मुलुंड
पहुँच जाता था मेरे साथ
मेरा बस्ता!
पाठशाला ने बस्ते की शिक्षा
दी,
पटरियों ने जिंदगी की!
लौटते समय देर रात हो जाने
पर
सहपाठियों से इतर डिब्बे
में
चढ़ जाता भीड़ में बेटिकट
अवैध रेल यात्री के रूप में
करता यात्रा!
कलवा स्टेशन उतरने पर
किसी को काले कोट में
टहलते देख, बढ़ जाती थी धड़कन
और सूखने लगते थे होंठ!
केवल तीन रूपये का अभाव
मुझे करता था इतना भयभीत!
आज भी काम आती है
उस तीन रूपये और
लोहे की पटरियों की सीख!
इसीलिये शायद,
जब कभी किसी के साथ
करता हूँ किसी गंतव्य की
यात्रा
तो सबसे पहले खरीदता हूँ
टिकट
खुद से पहले अपने सहयात्री का!
अब तक बच सका हूँ
थोड़ा सा मनुष्य !
पवन तिवारी
२५/०१/२०२४
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