यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

दर्द अंदर है अधर पे है हँसी



दर्द अंदर है अधर पे है हँसी

ज़िन्दगी इस तरह अधर में फँसी

दर्द  को  मैं  उछालना चाहूँ

किंतु अंदर के भी अन्दर है धँसी

 

प्रेम में खुद को बाँधना चाहा

प्रेम पथ पर ही नाधना चाहा

फिर भी दुःख हाय छोड़ता ही नहीं

अनेक  यत्न  साधना चाहा

 

हँसते चेहरे पे उदासी छायी

ये कला ठीक से नहीं आयी

लोग  कैसे  बदल रहे चहरे

ये कला हमने क्यों नहीं पायी

 

रोज गिरते हैं  रोज उठाते हैं

बिन अपराध के भी पिटते हैं

कैसे - कैसे  अजूबे  होते हैं

घर के ही लोग मुझसे चिढ़ते हैं

 

पवन तिवारी

२६/०४/२०२३   

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