ये कहानी दूर तक जानी
बात तूने ना मेरी
मानी
बात सबके होठों पे छायी
तूने अपने मन की ठानी
जो छुपाते फ़ैल जाती है
होंठ चुप तो आँख गाती है
साफ़ कितना हो गला लेकिन
हिचकी तो दिन रात आती है
हों, अकेले मुस्कुराते हैं
राह चलते गुनगुनाते हैं
ये सभी लक्षण उसी के हैं
दिन में भी जो खाब आते हैं
तेरा भी अब हाल ऐसा है
मजनूँ या दीवाने जैसा है
जीने मरने से परे अब हो गया
पूछना बेकार कैसा है
पवन तिवारी
०६/०१/२०२३
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