बाबू जी मजबूर गाँव में
मुंबई में मजदूर है बेटा
अम्मा है बीमार गाँव में
रात में लेटे सोचे बेटा
बेटा पास नहीं बाबू के
दोनों की मजबूरी है
गाँव में रहके क्या कर लेगा
पइसा बहुत जरुरी है
बाबू अम्मा पड़े खाट पर
कोई नहीं पुछंतर है
बेटा है पर पास नहीं है
सुख से दुःख का अंतर है
रिश्ते को पैसा खा जाता
बिन पैसे रिश्ता टूटे
सभी इसी उलझन में सोचे
सोच में ही रिश्ते रूठे
काश कभी हो जाता ऐसा
रोजगार गाँवों में आता
माँ बाबू के साथ में रहते
माँ बाबू का प्यार भी पाता
थामें रहते सुख दुःख में कर
रिश्तों में गर्माहट
रहती
थोड़े में भी खुश रह लेते
सदा प्रेम की आहट रहती
पवन तिवारी
२७/०१/२०२३