ज़िंदगी है बहुत कीमती कृति
माँगती है बहुत ही मगर धृति
इसके पथ तो बहुत ही कठिन हैं
इससे ज्यादा दिखे इसकी प्रतिकृति
छल हमेशा ही देता
थकावट
काम आती नहीं है
बनावट
पीड़ा की भाषा सबसे प्रभावी
कैसी हो होती निष्फल सजावट
कुछ को देती है वर्षा तरावट
किन्तु है निर्धनों
से अदावत
भेंट जिनके चढ़े बाढ़
में घर
वो करें भी तो
कैसे बग़ावत
बासी कुचले हुए हार
हैं जो
उनको उपवास का भान क्या हो
जिनका व्रत है
फलाहार हैं जो
पवन तिवारी
१९/०१/२०२३
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें