माया
से यह मन
खंडित है
अहंकार
में
बस पंडित है
मिल
जाये आशीष आप का
समझूँगा
जीवन मंडित है
प्रभु
कीर्ति आप की जातरूप
मिल
जाये मृदुवत ज्ञान कूप
इक
क्षण की कृपा दृष्टि होवे
हेमंत
भी दे ऋतुपति सा धूप
जग
के छल से मन आहत
है
सो
मन को आप की साहत है
सब
मृग मरीचिका भटक लिया
प्रभु आप शरण में
राहत है
दीन
दुखी के परम वरद हो
आप
निरंतर प्रभु अनहद हो
मिल
जाये आशीष आप का
उसका
निश्चित विमल विरद हो
आप प्रभु पावन
विशाल वट
हम
डाली के अधम से मरकट
अनुकम्पा
प्रभु आप करें तो
मिल
जाये जीवन का सदतट
पवन
तिवारी
०२/०९/२०२२
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