पुष्कर
सा उर है खिल जाता
जब
तेरा दर्शन मिल जाता
ओझल दृग से जब होता है
अंतरतम
तब है हिल जाता
प्रत्यय एक
तुम्हें लेकर है
देख
तुम्हें दिन बन जाता है
पग
मेरी साकल खड्काता
देख तुम्हें
ये हर्षाता है
अनुरक्ति है
या भक्ति है
या
कोई अप्रतिम शक्ति है
सच्चे
प्रेम में जो रम जाये
फिर
सामान्य कहाँ व्यक्ति है
वैसा
कुछ तुममें लगता है
कोई
दीप तुममें जगता है
पथ
स्पष्ट दिखाई देता है
मध्यम
राग तत्त्व पगता है
चाहे पड़े
हलाहल पीना
मुक्ति
प्रेम में बस तुम्हरे हैं
लाग
लपेट न झूठ है सीना
पवन
तिवारी
०१/०९/२०२२
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