डाही
व्यक्ति की छाया
से भी
बचकर
रहने में ही हित है
उनसे
तर्क बहस ना करिए
कलुषित
उनका तन व चित है
प्रतिभा
से कई बार अकारण
जलने
वाले रहते जलते
विष
से भरे लोग
जीवन में
निज
विष से ही सहज हैं गलते
गुणी
जनों
के बारे में
अक्सर
प्रवाद फैलाते हैं
प्रतिश्रुत
होकर बड़े लगन से
निज
को हानि पहुँचाते हैं
निज
को एक निरंतर औषधि
करो
परिष्कृत निज प्रतिभा को
बिन
प्रयास के ही जग देखे
अद्भुत
तुम्हरी इस आभा को
इतने
ऊँचे उठो कि सर पर
कोई
पंक न फेंक सके
यदि
कोई दुस्साहस कर दे
उसको
ही ओ आन लगे
पवन
तिवारी
२९/०८/२०२२
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