कुसुमित
वय में हो जाता है
अभिरूप
देख खो जाता है
मेरी
भी दशा सहज
वैसी
मन
उसी नगर को जाता है
तुम
प्रतिभा में लोकोत्तर हो
तुम
प्रति प्रश्नों का उत्तर हो
मैं
साथ तुम्हारा पा न सका
इसलिए
कहूँ तुम पत्थर हो
यह कथा कोई
रामायण ना
मैं
हूँ कोई नारायण ना
अन्तः
खीझा दुःख भी था पर
इतना
भी स्वार्थपरायण ना
अब देखा वर्षों बाद तुम्हें
संतानों
संग आबाद तुम्हें
मेरी
भी दुनिया कुछ ऐसी
दिल
कहे मुबारकबाद तुम्हें
ये शोक प्रेम की
स्मृतियाँ
उर
में भटकें कितनी बतियाँ
इनसे ही
जीवन है अद्भुत
जीवन
की हैं कितनी जतियाँ
पवन
तिवारी
२५/०८/२०२२
अब देखा वर्षों बाद तुम्हें
जवाब देंहटाएंसंतानों संग आबाद तुम्हें
मेरी भी दुनिया कुछ ऐसी
दिल कहे मुबारकबाद तुम्हें///
एक विगत प्रेमी के मन की व्यथा और वेदना को इंगित करती मार्मिक अभिव्यक्ति। एक नये अंदाज का आपकी काव्याभिव्यक्ति बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है।मेरी शुभकामनाएं 🙏
सतत एक प्रतिबद्ध एवं सजग पाठक के रूप में आप की टिप्पणी प्रेरित करती है। स्नेह, सराहना हेतु अनेकानेक आभार👏💐
जवाब देंहटाएंबीते दिनों की स्मृतियों का संवेदनात्मक पिटारा प्रस्तुत करती संभ्रांत रचना।
जवाब देंहटाएंबधाई हो आदरणीय
धन्यवाद ,लालबहादुर चौरसिया जी
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