इस तुमुल भरे
जग जीवन में
मन
तृषित शांति को भटक रहा
सीधे
- सच्चों का मुख धूमिल
कलुषों
का मुख अधि चटक रहा
चहक
रहे वे लंद -
फंद जो
सीधों
का कार्य ही अटका है
जो
अन्यों का भी हित चाहें
उनको
पग-पग पर झटका है
बाधा
जनहित के कारज में
वर्षो
– वर्षों से लटका है
जो ग़ैर ज़रूरी है अवैध
वह
जोर–शोर से चटका है
इस
काल में भी हँसकर जीना
समझो
कलयुग को पटका है
चलते
रहना नैतिक पथ पर
दुष्टों
के ख़ातिर खटका है
माना
कई बार हुए विचलित
कई
बार डिगा मन भटका है
पर
अंत समय सत के पथ पर
जल प्रेम सत्य का गटका है
पवन
तिवारी
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