मैं
आमुख हूँ तुम
कथा प्रिये
तुम
ही वांछित सर्वथा
प्रिये
मुझको
तथापि तुम ना समझी
यही
मूल है मेरी व्यथा प्रिये
मेरे
जीवन की त्राता हो
तुम
प्रेम हर्ष की
दाता हो
जीवन
भर सुख दुःख के साथी
ऐसे
निर्मित निज नाता हो
है
जग से बहुत मिला शोषण
तुमसे
मिल जाय पृष्ठ पोषण
पुनि
सभी निरादर सह लूँगा
हिय
को मिल जाएगा तोषण
मैं
कौतुक ना करना
चाहूँ
यौतुक
भी कोई ना चाहूँ
बस
एक मनोरथ केवल तुम
जीयूँ
संग में मरना
चाहूँ
पवन
तिवारी
१४/०८/२०२२
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय पपवन।शब्दों का चयन अत्यंत मनमोहक है।अनुराग रस पगी रचना 👌👌👌🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेणु जी, प्रशंसा एवं प्रोत्साहन हेतु👏💐💐💐
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