यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

कितना कुछ है छुप जाता


कितना  कुछ  है  छुप  जाता   बतलाने  से

कितना  कुछ  खुल जाता  आँख  चुराने से

ये दोनों विधियाँ भी बहुत अधिक शातिर

कितने   ऐसे    भरमें    हैं     भरमाने   से

 

ठीक  नहीं  होगा  सब  उनके  आने  से

या  सब  गड़बड़  होगा इनके  जाने से

ऐसा कर दो वैसा कर दो  कहते हैं सब

जग गाता यदि  दुख कट जाते गाने से

 

अपनी अपनी बाते हैं अनुभव अपने

सबको हक़ है देख रहे हैं सब सपने

कभी-कभी कुछ सच होता है कुछ मिथ्या

नापने वाले भी कभी लगते हैं कंपने

 

सो,  स्वभाव  जैसा  है  वैसा  रहने  दो

कौन कह रहा क्या मत सोचो कहने दो

बात प्रतिष्ठा की यदि हो तो अड़ जाओ

हाँ, जो  सहते  हैं  उनको तुम सहने दो

 

बात बात पर मत  उलझो  नादानी है

पहले समझो कितना  गहरा  पानी है

उतरो  तो  संकल्प  लिए  पूरे  मन से

मत सोचो  फिर राजा है कि रानी है

 

पवन तिवारी

०१/०८/२०२२  

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