यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

वह दृश्य बड़ा आकर्षक था

वह  दृश्य   बड़ा   आकर्षक  था

तुम छवि गृह छवि मैं दर्शक था

तुम्हें  देखा   भेंट  हुई    सही

मेरा  प्रयास   तो   भरसक  था

 

वह  पहला  भाव  सुरक्षित  है

तुम्हरे ही   लिए  आरक्षित  है

हिय  का मध्यस्थल तब से ही

तुम्हरे  ही  लिए   संरक्षित  है

 

तुम  मेरे   पक्ष  से  परिचि  हो

या पूरी  तरह  अपरिचित  हो

जग  के  लिए हो सकती सुंदर

मेरे  लिए  तुम रति अर्चित हो

 

यह  भाव   अस्थिर  नहीं अचर

कैसी   स्थिति   परिवेश   लचर

है  प्रथम  यही, यही  अंतिम  है

साक्षी हों नभ चर,जल,थल चर

 

पवन तिवारी

०३/०८/२०२२

    

1 टिप्पणी: