वह
निर्निमेष सा  अवलोकन 
तुम
पर ही गड़ा रहा लोचन 
अन्तरतम
की धुक धुकी बढ़ी
अनुपम
स्वरूप  ऐसा शोधन 
अब
रूप नहीं  भरमा  पाते 
जैसे
  मुझसे   हैं   शरमाते
तुम्हरा
स्वरुप है बसा हुआ 
सब
तुच्छ से  हैं  आते जाते 
तुम
काया से कहीं हो बढ़कर 
सारी
  विद्याएँ
  हो  पढ़कर
दारा
  स्वरुप   में  देवी  सी
तुम
रूप शिखा पर हो चढ़कर 
जब
से तुम  से  संवाद  हुआ
लागे
ज्यों  अनहद नाद हुआ 
जो
कुछ अकथ्य अव्यक्त रहा 
उन
सबका भी अनुवाद हुआ 
आधा
जीवन   छल घोंट गया 
जैसे
था  सब  कुछ  ओट
गया 
तुमने
 सब  खेद  मिटा
डाला 
तुम
पर आहत मन लोट गया
पवन
तिवारी 
०७/०८/२०२२
    
 
 
 
जब से तुम से संवाद हुआ
जवाब देंहटाएंलागे ज्यों अनहद नाद हुआ
जो कुछ अकथ्य अव्यक्त रहा
उन सबका भी अनुवाद हुआ
👌👌👌
अत्यंत भाव-पूर्ण और उत्कृष्ट रचना सुदक्ष कवि की लेखनी से।बधाई पवन जी 🙏