छल
प्रपंच सच को मिलकर उलझायें हैं
लोग
झूठ के गीत ख़ुशी से
गाये हैं
झूठ
का नाटक अच्छा लगता है सच से
लोग
उसी पर तन मन धन बरसाये हैं
सबसे
मोहक धूर्तों की ही अदायें है
इस
युग की ये कैसी अभिलाषायें हैं
माया
से ही सबने हैं अनुबंध किये
जिसकी सारी
संतानें पीड़ायें हैं
सत्य
सुपथ पर पग पग पर बाधायें हैं
इसीलिये गिनती के कुछ पद आये हैं
झूठ
पाप के द्वार क़तार लगी अतुलित
ऐसी उसकी आकर्षक
मुद्रायें हैं
सत्य
पे अत्याचार सभी ने ढाये
हैं
सत्य
पे हर मौसम में बादल छाये हैं
फिर
भी सत्य सत्य सा अडिग खड़ा रहता
अंत
में सब उसके चरणों में धाये हैं
पवन तिवारी
०२/११/२०२१
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