बिछड़े-बिछड़े
से मिले लोग नज़र आते हैं
स्वप्न
में इन दिनों सूखे ही शज़र आते हैं
बिगड़ा
परिवेश मनुजता का हाल ऐसा है
लोग
अपने हैं परायों
से नज़र आते हैं
अपना
चेहरा ही देखना यहाँ सभी चाहें
बड़ी
मंज़िल है मगर रास्ता छोटा चाहें
हर
तरफ मैं का,मेरा शोर बढ़ता जाता है
लोग
बस अपनी प्रशंसा को ही सुनना चाहें
हर
कोई मध्य में स्थान को पाना
चाहे
हर
कोई हर जगह सम्मान से आना चाहे
किन्तु
इसके लिए क्या आचरण चाहिए कैसा
किये
बिन भान इसका जैसे हो छला जाये
ऐसे
में कैसे भला प्रेम
और नेह बचे
जिंदगी
में सभी के सच की थोड़ी रह बचे
विचार
का है समय और ये करना होगा
रूह
भी ज़िन्दा रहे और उसकी देह बचे
पवन
तिवती
०१/११/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें