ग़ैर
मिले जो हुए थे अपने
सच
जैसे हो गये थे सपने
अपनों
का छल कितना गहरा
ग़ैर ही
हुए सच्चे नपने
अपनों
से जो घाव मिले थे
गैरों
ने ही उन्हें
सिले थे
अपनों
से तो त्रास मिले थे
गैरों
में आकर के खिले थे
अपनों
ने जो डंक थे मारे
दिन
में दिखाई देते तारे
गैरों
ने तब हाथ था थामा
भटक
रहे थे द्वारे – द्वारे
गैरों
से सम्बंध है अच्छा
उनसे
नेह मिला है
सच्चा
गैरों
को स्वीकार सको तो
जीवन
में कम मिलेगा गच्चा
पवन
तिवारी
२७/०४/२०२२
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