मुझको
निश्चित ही बहुत एकांत प्रिय है
पर अकेलापन ये मुझको
खल रहा है
आग से
भी जल चुका हूँ,
जानता हूँ
किन्तु
उससे दुखद की हिय जल रहा है
हँस
रहे हैं मातहत
मेरे क्यों मुझसे
समय
मुझसे आज आगे चल रहा है
बीतेगा
ये शीत वाला
समय जल्दी
आज-कल
सूरज जो जल्दी ढल रहा है
मेरा भी अनुभव
पहाड़ों सा बड़ा हैं
बुरा
अच्छा दोनों मेरा कल
रहा है
ये समय भी सीख देगा है
गुरू ये
क्या
पता प्रारब्ध का ये फल रहा है
निज
पे है विश्वास होना
सफल ही
समय
का चक्कर सो थोड़ा टल रहा है
ख़ुद
चुना हूँ राह सो कैसा विचलना
धैर्य
भी कई संकटों का हल रहा है
हाँ,
उदासी भी कभी आ जाती है
किन्तु
अक्सर मन का ऊँचा बल रहा है
सदा
रवि को ढँकने का सामर्थ्य किसमें
मेघों
का कैसा
भी कितना दल रहा है
पवन
तिवारी
४/०४/२०२२
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