दर्द
से दिल दबा जा रहा
पास
में ही कोई गा रहा
ऐसी
दुनिया मेरी आज-कल
हर्ष
रोते हुए आ रहा
थोड़ा
थोड़ा अनिश्चित है सब
दूसरों
का व्यवस्थित है सब
जग रहा घूमने
लग
रहा
किन्तु
पहले सा स्थित है सब
कुछ अवसाद इतना बढ़ा
पारा
है ताप से
ज्यों चढ़ा
कल
तलक आम सा आदमी
वक़्त
ने मेरे सर क्या मढ़ा
खुद
को खुद में समेटा था फिर
वक्त के
साथ लेटा था फिर
खुद
से संवाद मैंने किया
वक्त
का अच्छा बेटा था
ज़िन्दगी लौट
आयी है फिर
साथ में
गुनगुनायी है फिर
निज से
संवाद रखना सदा
दिल
में रौनक सी छायी है फिर
पवन
तिवारी
७/०३/२०२२
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