यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 19 जुलाई 2022

याद करता नहीं

याद  करता  नहीं   याद   आती  है  वो

यादों  में  आके  जल्दी   जाती  है वो

खोद  कर  पूछती   है  पुराने  वो  दिन

दिल दुखा करके जाने क्या पाती है वो

 

क्या  बताऊँ  पुराने  जमाने  वो  दिन

थोड़े आवारा थोड़ा  सुहाने  वो  दिन

मिलने वाले ही थे कि बिछड़ हम गये

बड़े  मासूम  नाज़ुक  दिवाने वो दिन

 

भूलते - भूलते  आधा   ही  भूले   थे

दर्द की कोख में सालों तक  झूले  थे

हम  अधूरी  जवानी   में  तोड़े  गये

फूलने  वाले  थे  आधा  ही  फूले थे

 

सोच  करके  कभी  होंठ  हँस देते हैं

औ कभी सोच कर आँख भर देते थे  

याद पर जोर चलता नहीं क्या करूँ

कुछ बुरे अच्छे कुछ याद धर देते हैं

 

यादों पर  वश मेरा  चलता  है ही नहीं

कहना  चाहूँ  कोई  सुनता  है  ही नहीं

यह भी अपनी  तरह की अलग ज़िंदगी

दिल को समझाऊं पर रमता है ही नहीं

 

पवन तिवारी

२१/०३/२०२२

 

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