याद
करता नहीं याद आती है वो
यादों
में आके जल्दी
न जाती है
वो
खोद
कर पूछती है पुराने
वो दिन
दिल
दुखा करके जाने क्या पाती है वो
क्या
बताऊँ पुराने जमाने वो
दिन
थोड़े
आवारा थोड़ा सुहाने वो दिन
मिलने
वाले ही थे कि बिछड़ हम गये
बड़े
मासूम नाज़ुक दिवाने वो दिन
भूलते
- भूलते आधा ही भूले थे
दर्द
की कोख में सालों तक झूले थे
हम अधूरी जवानी में तोड़े गये
फूलने
वाले थे आधा ही फूले
थे
सोच
करके कभी होंठ हँस देते हैं
औ
कभी सोच कर आँख भर देते थे
याद
पर जोर चलता नहीं क्या करूँ
कुछ
बुरे अच्छे कुछ याद धर देते हैं
यादों
पर वश मेरा चलता है
ही नहीं
कहना
चाहूँ कोई सुनता
है ही नहीं
यह
भी अपनी तरह की अलग ज़िंदगी
दिल
को समझाऊं पर रमता है ही नहीं
पवन
तिवारी
२१/०३/२०२२
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