बुरे
दिनों में साथी
भी झुठलाते हैं
ऐरे गैरे भी जमकर समझाते हैं
जो
भी दृष्टि पड़े है बस
शक से देखे
दया
दिखाते बच बच कर बतियाते हैं
तिरछी
नज़र देखकर नज़र झुकाते हैं
दूर
से ही रस्ता बदलें कट
जाते हैं
अकस्मात
पड़ गयी नज़र आवाज़ जो दी
जल्दी
में हैं इक
दिन मिलने आते हैं
ऐसे
अनुभव
हर
हप्ते ही पाते
हैं
घर
के लोगों से भी ताने खाते हैं
मरने
से भी मुश्किल होता है जीना
खुद
को ही अंदर
अंदर गरियाते हैं
दिन
नहीं कटते राते ठहर ही जाती हैं
बुरी
– बुरी बातें ही मन में आती हैं
कभी
कभी तो सर चकराने लगता है
आँखें
सोने तक का सुख नहीं पाती हैं
अच्छे
दिन आते ही फोन बिजी होता
अपना
बैग ख़ुशी और
ही है ढोता
कुकुरमुत्ते
से पैदा होते सम्बंधी
जो
भी सोचो उससे भी अच्छा होता
पवन
तिवारी
२९/०४/२०२२
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